ARTICLES: श्री राम लला के रत्न और परम श्रद्धेय गुरुजी श्री अर्णव के चिंतन और मनन
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श्री राम लला के रत्न और परम श्रद्धेय गुरुजी श्री अर्णव के चिंतन और मनन-Hindi Media Carries My thoughts on the Gems , Jewels of Ram Lalla & the deeper philosophy behind it.
Pleased to know the Nav Drishti Times & DD Divya Delhi carry an inspirational article on the above subject in their print editions yesterday.
I am pleased to know about your inference and interpretation and it is nothing but Shri Ram’s will and way to reach a wider audience. I like it any which way.
Hindi article below:
अयोध्या में राम लला की मूर्ति की प्राण - प्रतिष्ठा और गुरुजी श्री अर्णव
हम सभी जानते और मानते हैं कि प्रभु राम तो आदि - अनादि काल से ही जन-जन के हृदय और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं।
राम हमारी सांसों में घुले हुए हैं, लेकिन अयोध्या में प्रतिष्ठित राम लला की मूर्ति का दर्शन हमें यह आभास दे गया कि राम लला की मूर्ति हमें कुछ नया बताना चाह रही है।
जिज्ञासु मन बेचैन हो गया।
इस जिज्ञासु , बेचैन मन में अनायास प्रातः स्मरणीय गुरुजी श्री अर्णव का स्मरण हो उठा।
दरअसल गुरुजी श्री अर्णव पर प्रभु राम की विशेष कृपा पिछले दो दशकों से है । वे मानव मात्र के कल्याण के लिए श्री राम के संदेश को संपूर्ण विश्व में प्रसारित कर रहे हैं।
जिन दिनों अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी, उसी समय - काल में गुरुजी श्री अर्णव थाईलैंड = लाओ सीमा के सुदूर निर्जन इलाके में श्वान और वानरों के साथ मंदिर के निर्विघ्न निर्माण और राम लला के विग्रह के लिए अनुष्ठान कर रहे थे।
बड़े ही अचरज की बात है कि गुरुजी ने यह वीडियो मंदिर निर्माण के 1 वर्ष पहले ही अपने फेसबुक प्रोफाइल पर पोस्ट कर दिया था । इस दिव्य चित्र में अति सुंदर दृश्य देखने को मिलते हैं कि कैसे घने जंगल में ये वानर और श्वान बस गुरुजी श्री अर्णव के 'जय श्री राम' बोलने पर सभ्य एवं अनुशासित ढंग से गुरुजी के पावन हाथों से उनका प्रसाद ग्रहण करते हैं।
22 जनवरी 2024 को अयोध्या के राम मंदिर का उद्घाटन हुआ,
राम लला के विग्रह की प्राण - प्रतिष्ठा हुई ।
राम सृष्टिकर्ता हैं , इसलिए राम से जुड़ा कोई भी कार्य अकारण हो ही नहीं सकता है।
राम मंदिर के उद्घाटन की तिथि, समय तथा उसमें विराजे राम लला की प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति जिन, दिव्य चेतना तथा सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाले , आभूषणों से सुसज्जित है, साथ ही उन पर जड़े पवित्र रत्नों के आध्यात्मिक महत्व का ज्ञान गुरुजी हमें देते हैं। इस दुर्लभ ज्ञान को उनसे पहले और आज तक भी किसी ने किसी को नहीं दिया है ।
पूज्य गुरुजी हमें यह भी ज्ञान प्रदान करते हैं कि राम लला की मूर्ति की प्राण- प्रतिष्ठा एक निश्चित मंगलकारी गुणांक में किया गया है। यह गुणांक 3, 6, 9, 12 ...इसी क्रम में है। राम लला से संबंधित प्रायः हर पहलू में यह गुणांक विद्यमान है।
संपूर्ण जगत में ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक निकोला टेस्ला ने 3,6,9 फ्रीक्वेंसी और आवृत्ति की बात कही है ,पर जैसे परमश्रद्धेय गुरुजी श्री अर्णव ने विगत 3 वर्षों में इसके बारे में विश्व को बताया है और यह भी बताया है कि इसकी शक्ति से कैसे सभी लाभान्वित हों , वैसे आज तक कोई नहीं कर पाया।
RAM -- 3
RAM- RAM - 6
JAI SRI RAM -- 9
लेख में आगे लिखने से पहले यही उचित है कि गुरुजी श्री अर्णव के चरणों में नमन करते हुए, उनके विराट व्यक्तित्व के विषय में संक्षिप्त रूप में आपको अवगत कराऊं।
गुरुजी श्री अर्णव एक आध्यात्मिक गुरु हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त एस्ट्रो जेमोलॉजिस्ट हैं । दुनिया की सबसे पुरानी और विश्वसनीय व्यापार पत्रिका , ' फोबेर्स ' ने उन्हें 'फादर ऑफ एस्ट्रो जेमोलॉजि और मेंटर आफ मेंटर ' जैसे खिताबों से नवाजा है।
वे रत्न , जेमोलॉजि और वैदिक ज्योतिष के क्षेत्र में अग्रणी विशेषज्ञों और पेशेवरों में से एक हैं। वे जी. आई .ए . (अमेरिका का जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ) से एक मान्यता प्राप्त ज्वैलरी प्रोफेशनल और भारत से प्रकाशित एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक , 'डेक्कन हेराल्ड' के भविष्यवाणी काॅलिमानिस्ट हैं।
गुरुजी श्री अर्णव की लिखित पुस्तक, ' ज्योतिष रत्न के रहस्य, भारत के पवित्र ज्योतिष रत्न चिकित्सा, मूल सिद्धांत एवं सूत्र ' विश्व विख्यात है और इसे मानक माना जाता है। अपनी पुस्तक में पौराणिक कथाओं के आलोक में रत्नों के इतिहास पर गुरुजी लिखते हैं,
" विभिन्न सभ्यता और संस्कृति में रत्नों का प्रयोग दर्शाया गया है। मुख्यतः खुशियों की प्राप्ति के लिए और अपनी सुरक्षा के लिए बहुत अरसे से मूल्यवान रत्नों का प्रयोग किया जाता रहा है। रत्नों को विस्तृत रूप से यहूदी , मिस्री सभ्यताओं , ईसाई और अन्य मुख्य सभ्यताओं में वर्णित किया गया है , लेकिन रत्नों एवं उनके प्रभाव के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी आपको प्राचीन हिंदू ग्रंथो में मिलती हैं जैसे गरुड़ पुराण और अग्नि पुराण ।
इस आधुनिक समकालीन दुनिया में कुछ जानकारी स्पष्ट और पुरानी लग सकती है , लेकिन रत्नों के बारे में कुछ उल्लेखनीय इतिहास और पौराणिक कथाओं को जानना अभी भी सार्थक है।
रत्न की उत्पत्ति -- वामन और राजा बलि की कथा
श्रद्धेय गुरुजी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि राजा बलि की कथा भागवत पुराण में वर्णित की गई है, जिसे 'श्रीमद् भागवत ' भी कहा जाता है। यह सभी पुराणों में सबसे विस्तृत और पवित्र है और यदि इस संपूर्ण पुराण और अन्य पुराणों को एक साथ लें , तो उन्हें पांचवा वेद माना जाता है।
भागवत पुराण में मुख्य रूप से मौखिक रूप से अपनाई जाने वाली परंपराओं को दर्शाया गया है, जिसकी रचना चौथी से दसवीं सदी में हुई । राजा बली को बलि भी कहा जाता है जो एक शक्तिशाली और समृद्ध राक्षस कूल के राजा थे । अपने गुरु के मार्गदर्शन में उन्होंने घोर तपस्या की और बहुत शक्तिशाली हो गए। अपने शौर्य से उन्होंने अपना साम्राज्य बढ़ाकर पाताल और स्वर्ग पर भी विजय प्राप्त की।
बली के हाथों हारने के बाद स्वर्ग के देवता इंद्र ( स्वर्ग के राजा) और अन्य देवताओं ने भगवान महाविष्णु की मदद ली । भगवान विष्णु ने एक वामन का रूप धारण किया और राजा बली के दरबार में प्रकट हुए।
बली अपनी करुणा और दानवीरता के लिए जाने जाते थे और वह सभी का उपकार करते थे , विशेष रूप से ब्राह्मणों को उनके द्वारा बहुत दान दिया जाता था। बली ने वामन देवता से पूछा कि उनकी इच्छा क्या है और वामन देव ने कहा कि उन्हें बली के साम्राज्य में तीन पग के बराबर भूमि चाहिए । हालांकि इससे पहले बली को उनके गुरु ने किसी अनहोनी घटना की चेतावनी दे रखी थी, फिर भी उन्होंने वामन देव की यह बात मान ली और उनकी इच्छा पूरी की।
तब वामन देव अपने असली रूप में आये और उन्होंने बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया ।उन्होंने एक कदम में स्वर्ग से जमीन तक की दूरी को नाप लिया और दूसरे कदम में उन्होंने इस धरती से पाताल तक का फासला तय कर लिया। तीसरे कदम के लिए कुछ भी नहीं बचने पर बली ने अपना वादा पूरा करने के लिए अपने सिर को वामन देव के आगे प्रस्तुत कर दिया कि तीसरा कदम उसके सिर पर रख दें। उनकी धर्मप्रियता से महाविष्णु बहुत प्रसन्न हुए और जैसे ही उनके चरण कमल बली के सिर पर पड़े, बली अमर हो गए। उनका शरीर रवेदार बन गया, जो टूट कर जमीन पर बिखर गया और प्रत्येक भाग कोई न कोई मूल्यवान रत्न बन गया।
इन रत्नों की उत्पत्ति नीचे सारणी के रूप में दी गई है:
रूबी --- बलि का रक्त , इसलिए इनका रंग गहरे लाल से गुलाबी तक होता है ।
मोती -- बलि का मन
मूंगा --- रक्त का वह भाग जो समुद्र में बह गया ।
पुखराज --- मांस
नीलम --- आंखें
हीरे ---- मगज
गोमेद ---- शरीर की चर्बी
लहसुनिया --- यज्ञोपवीत नामक पवित्र धागे से
फिरोज़ा --- तंत्रिका प्रणाली
घृत मणि ---- कमर के मांस के टुकड़े
तेल मणि --- त्वचा
भीष्मक --- सिर के भाग
ऊपालक मणि/ ओपल - थूक
स्फटिक मणि ---- पसीना
पारसमणी / सोने का पत्थर --- दिल के टुकड़े
उलूक मणि ---- जीभ के टुकड़े
लापीस लाजुली ----बाल
मसर मणिए ईशित्व मणि ---
विष्ठा
चंद्रकांत ---- वीर्य/ आंखों की पुतलियां
इस प्रकार से कुल मिलाकर शरीर के 84 अलग-अलग अंग रत्नों में परिवर्तित हो गए । इन 84 में से केवल 21 रत्नों को मूल्यवान माना जाता है, क्योंकि इनकी चमक बहुत अधिक होती है । इन 21 में से केवल 9 को नवरत्न कहा जाता है क्योंकि इनकी अपनी विशेषताएं होती हैं और चमक भी बहुत तेज होती हैं। इसलिए 9 मुख्य रत्न हैं , 12
साधारण रत्न और 63 आम रूप से पाए जाने वाले रत्न जिन्हें उपरत्न भी कहा जाता है। प्रसिद्ध ऋषि वराहमिहिर ने इस कथा को अपनी पुस्तक 'वृहत् -संहिता' में उल्लेख किया है।
रत्नों की उत्पत्ति -- ऋषि दधीचि और इंद्र
अग्नि पुराण में रत्नों के बारे में एक रोचक कहानी है। देवताओं और असुरों के युद्ध में देवताओं के राजा इंद्र की पराजय हुई और शक्तिशाली असुर ने राजा इंद्र को स्वर्ग से भी बेदखल कर दिया, जिसका नाम वृत्तासुर ( वृत्त) था। उसने दुनिया भर का पानी अपने और अपनी असुरों की फौज के लिए इकट्ठा कर लिया, ताकि बाकी सब लोग भूख और प्यास से मर जाएं और कोई भी उसकी शक्ति को चुनौती न दे सके। इस असुर को यह वरदान मिला हुआ था कि वह किसी अस्त्र से नहीं मारा जा सकता था, इसके अतिरिक्त लकड़ी या धातु के बने किसी भी प्रकार के शस्त्र द्वारा नहीं मारा जा सकता था।
इंद्र और अन्य देवता ब्रह्मा जी के पास गए और अपनी व्यथा सुनाई। ब्रह्माजी ने उन्हें सलाह दी कि महर्षि दधीचि की रीढ़ की हड्डी से एक वज्र- थंडरबोल्ट बनाया जाए जिससे वृत्तांत को मारा जा सकता है । महर्षि दधीचि बहुत महान ऋषि थे, साथ ही साथ शिव भगवान के बहुत बड़े भक्त थे । अपनी साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण उन्होंने बहुत ऊर्जा और आत्मज्ञान ज्ञान प्राप्त कर लिया था । इंद्र दधीचि के पास गए और उन्हें अपनी व्यथा बताई और ब्रह्मा जी द्वारा बताए गए वज्र - थंडरबोल्ट के बारे में बताया।
दधीचि ने इंद्र को सलाह दी कि जब वह ध्यान की अत्यंत गहरी अवस्था में हों तो उनके शरीर पर नमक लगाया जाये और फिर उसे
कामधेनु ( स्वर्ग की गाय) द्वारा चटवाया जाये। इससे शरीर का मांस निकल जायेगा और उसके अंदर की रीढ़ की हड्डी निकाली जा पायेगी। इंद्र ने ऐसा किया और महर्षि दधीचि की साबुत रीढ़ की हड्डी विश्वकर्मा जी के पास लेकर गए जो कि देवताओं के शिल्पकार थे, ताकि वह उसका थंडरबोल्ट बना पाएं।
कहा जाता है कि जब विश्वकर्मा वज्र बना रहे थे तो अस्थियों के चार अलग-अलग टुकड़े पृथ्वी के अलग-अलग स्थान पर गिरे और यह स्थान हीरों की उत्पत्ति की खान बन गए। इसीलिए हीरे को वज्र के नाम से भी जाना जाता है। उनके शरीर के अन्य हिस्से अलग-अलग मूल्यवान पत्थर बने। इस प्रकार वज्र के प्रयोग से इंद्रदेव वृत्तासुर को मार पाए और उन्होंने पूरे संसार के लिए पानी उपलब्ध करवाया। "
वस्तुत: ज्योतिष रत्न की जानकारी के जिज्ञासुओं के लिए आवश्यक है कि श्रद्धेय गुरुजी श्री अर्णव की पुस्तक, ' ज्योतिष रत्न के रहस्य, भारत के पवित्र रत्न चिकित्सा , मूल सिद्धांत एवं सूत्र ' का अध्ययन करें । पुस्तक हिंदी और अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित है। प्रत्येक ज्योतिष रत्न के विषय में अलग-अलग अध्याय हैं। बहुत तार्किक ढंग से और तथ्यों पर आधारित सभी ज्योतिष रत्नों के गुण और उनके धारण करने के तरीके को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। चूंकि गुरुजी श्री अर्णव जेम थेरैपी के जन्मदाता माने जाते हैं , इसलिए यह पुस्तक एक विस्तृत ग्रंथ है जो भारतीय जेम थेरैपी की आकर्षक एवं विस्मय भरी दुनिया से आपका परिचय करवाएगी।
वर्तमान काल में ज्योतिष रत्नों के सबसे बड़े ज्ञाता गुरुजी श्री अर्णव ने 3,6,9,12 ...के मंगलकारी गुणांक, जिसका उल्लेख मैंने पूर्व में किया है, में राम लला की मूर्ति, उससे जुड़े आभूषण और रत्नों के
महत्व की अदभुत जानकारी हमें उपलब्ध कराई है।
गुरुजी बताते हैं:
** राम लला की मूर्ति की लंबाई 51 इंच है, यानी 5 + 1 = 6
जय श्री राम
** राम लला की मूर्ति द्वारा धारण किए गए आभूषणों में 51 के.जी. स्वर्ण का उपयोग हुआ है , यानी 5 + 1 = 6
जय श्री राम
** आभूषणों में प्रयुक्त किए गए हीरों और पन्नों का कुल वजन 18,000 कैरेट है ,
यानी 1+ 8 = 9
जय श्री राम
** दैविक मुकुट का वजन 1.71 के . जी. है ,
यानी 1+ 7 + 1 = 9
जय श्री राम
** मुकुट में अलौकिक और कल्पना आभा है। इसमें 261 माणिक जड़े हुए हैं,
यानी 2 + 6 + 1 = 9
जय श्री राम
** मुकुट में उच्चतम श्रेणी के हीरे जड़े हुए हैं, जिनका सही-सही वजन 75 कैरेट है, यानी
7 + 5 =12
जय श्री राम
** मुकुट में एक विशेष खदान के लगभग 174 कैरेट के फाइन वाटर जैम्बेइन पन्ना हैं,यानी 1+7+4 =12
जय श्री राम
** भगवान सूर्य की छवि से मुकुट विभूषित है। सूर्य का 1 वर्ष में 12 चक्र होता है।
जय श्री राम
** गुरुजी श्री अर्णव लिखते हैं,
" .... And the Divine Ratna Raj --The king of Gems adorns the The Throat Chakra of Our Shri Ram and that is also connected to 9 : 12 but that will be told when it is time. Now it is exactly 9: 33
Do Gems Work| Astrological Gem Impact| Celebrity Reviews| Gemstoneuniverse
Jai Shri Ram
उपरोक्त 9 तथ्य गुरुजी श्री अर्णव का शोध हैं और 3,6, 9 .. अंकों की महत्ता भी परिलक्षित होती है।
श्रद्धेय गुरुजी का मानना है कि आप 9 मर्तबा जय श्री राम को जोर से पढ़ें / मंत्र सा जाप करें / मन ही मन मनन करें -- तो 9 निधि प्राप्त कर लेंगे।
परम ज्ञानी गुरुजी श्री अर्णव की चंद पंक्तियां प्रस्तुत हैं :
" It is is vital to understand and appreciate that the Hands that have been chosen to create this divine Jewellery having powerful Gems -- is the most difficult part of the 3 step process of Consecration - Energisation - Pran Pratishtha - The Trimurti ( 3) of Vital life. So the Assembly Line Method was used and I humbly bow down to the artisans chosen by Shri Ram to create this Resplendent - Alive --- Ratna Jeeva Murti from the Krishna Shila to adorn the Ram Lalla .
प्रभु श्री राम की कृपा से त्रेता काल के अनेक गूढ़ तथ्यों के गहन ज्ञान से गुरुजी श्री अर्णव परिपूर्ण हैं। प्रभु श्री राम की मूद्रिका में भी एक ज्योतिष रत्न था । रामजी की वह मुद्रिका एक बार खो गई थी । हनुमानजी उसे ढूंढने पाताल लोक तक गए थे। देवताओं द्वारा धारण किए गए रत्नों का रहस्य गुरुजी श्री अर्णव को ज्ञात है । गुरुजी श्री अर्णव बताते हैं कि हनुमानजी ने भी एक रामायण की रचना की थी । इसी तरह त्रेता युग के ऐसे अनेक तथ्यों का ज्ञान गुरुजी को प्राप्त है।
गुरुजी श्री अर्णव का दर्शन होने से राम लला की प्राण - प्रतिष्ठित मूर्ति और राम मंदिर में जड़े रत्नों का रहस्य उद्घाटित होगा, दुर्लभ ज्ञान की प्राप्ति होगी।
मानव हित में यह आवश्यक है कि रत्न धारण करने वाले विश्व के सभी नागरिक ज्योतिष रत्न के रहस्यों से अवगत हों और ऐसा केवल श्रद्धेय गुरुजी श्री अर्णव की कृपा से ही संभव है । यह अकाट्य सत्य है कि गुरुजी श्री अर्णव के दिशा - निर्देशन में ही रत्न धारण करने से व्यक्तियों को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
वर्तमान में परम पूज्य गुरुजी श्री अर्णव विश्व प्रसिद्ध संस्थान, 'जेमस्टोन यूनिवर्स -रत्न ब्रह्मांड ' के संरक्षक हैं, जो हमें उच्च कोटि के पावन रत्नों की शक्ति से अवगत भी कराते हैं और उपलब्ध भी कराते हैं।
मैं सादर, सविनय आप सभी से आग्रह एवं निवेदन करता हूं कि आप सभी गुरुजी के ' राम लला के रत्न और आभूषण पोस्ट' को, उनके फेसबुक प्रोफाइल पर, स्वयं अध्ययन करें और उसका आनंद लें --- श्री राम आपको खुद आपसे संबंधित सुविचार देंगे और आपका पथ प्रदर्शित करेंगे ।
जय श्री राम, जय गुरुदेव ।
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